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रात सावन भी आये

 रात सावन भी आये,  बदरा भी बरसे भींगे ना मन, ना ही अलक  सुरमई आँखों की रह गई कसक  अंधी अंधेरी आहटों से बूंदें भी रोई  बूंदें जमीं पर गिरते, लगी खिलन े  जैसे झुक कर चूमा हो  तेरे कानों को तेरे  अधरों को, हाथों को, गालों को  फिर सरकती हुई बूंदें लगी तैरने  जैसे चंचल हुआ नीर,  मादकता के गलियारों मे फिर स्थिर हुई बूंदें मन-कलश मे । -शिवम् शाही Date: 26 June 2015

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

ज़िन्दगी अगर ज़िन्दगी के तमाम रंग ग़ज़ल में देखने हों तो राजेश रेड्डी को पढ़ना एक अनिवार्य शर्त है। One of the famous creations done by one & only Rajesh Reddy! शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं आपके रस्ते हैं आसाँ आपकी मंजिल क़रीब ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

यक़ीं तक आएगा इक दिन गुमाँ, ग़लत था मैं - अमित गोस्वामी

One of the nice poems written by Amit Goswami! यक़ीं तक आएगा इक दिन गुमाँ, ग़लत था मैंमुझे लगा था छँटेगा धुआँ, ग़लत था मैं मेरी तड़प पे भी आँखों में तेरी अश्क न थे मुझे यक़ीन हुआ तब, कि हाँ, ग़लत था मैं नज़र में अक्स तेरा, दिल में तेरा दर्द लिए मैं कब से सोच रहा हूँ, कहाँ ग़लत था मैं लगा था अश्कों से धुल जाएँगे मलाल के दाग़ मगर हैं दिल पे अभी तक निशाँ, ग़लत था मैं मेरा जुनून था क़ुर्बत के रतजगे लेकिन मेरा नसीब है तन्हाइयाँ, ग़लत था मैं - अमित गोस्वामी

यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है - राजेश रेड्डी

This poem is written by Rajesh Reddy and it is dedicated to the irony of life! यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम-सा बच्चा बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है न बस में ज़िन्दगी इसके न क़ाबू मौत पर इसका मगर इन्सान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है अज़ब ये ज़िन्दगी की क़ैद है, दुनिया का हर इन्सां रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है! - राजेश रेड्डी

यहाँ भी हैं , वहा भी हैं ...

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ये जो तुम्हारा जहां है यहाँ भी हैं वहा भी हैं तुम्हारा रूप, रंग, रस, रास ; यहाँ भी हैं वहा भी हैं तुम्हारे अधरों के तट से बहता मध वो गर्दन के तराश से आंकता कोहिनूर सौंदर्य का ये सरोवर जो है वहाँ उसकी भीनी खुशबू यहाँ भी हैं वहा भी हैं परंतु , आज जो हम मग़रूर है, तो तुम  भी चूर हो याद तुम्हें भी आ रही लकीरे मेरी भी बदल रहीं जो आस यहाँ है, पायल के वेग की अधरों की अस्थिरता, यहां-वहाँ भी हैं अब ना तुम यहाँ हो, ना वहाँ हों बस वही सफ़ेद इश्क़ यहाँ भी हैं वहा भी हैं  ... 

होना या ना होना

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Add caption ये सुगंध, जो तुम्हारे होने से है इसी होने से है  विरह की चीत्कार  तुम्हारे अधरों की नमी से  पुनर्जीवित होते भावनाओ के अवशेष  विखरते लफ्ज़  और संकलित होते होठों  का  संगम, है विहंगम दृश्य  अधरों का ये साधारण स्पर्श  विसर्जन है एकाकीपन का ... 

Gorakhpur_children_deaths :(

लोग कहते ये सियासत का मुद्दा नहीं हम कहते, कैसे नही.. वो कल इस्तिफ़ा मांगेंगे चलो हम आज ही मुकर जाते हैं वो संवेदना की बात करेंगे चलो हम 'वन्दे-मातरम' तैयार रखते हैं छोटा सा 'आतंकी हमला' ही तो था, केवल त्रिसठ नयी सांसे ही तो थी चलो 'नैतिक-पतन' कर नेता बनते हैं, चलो हम सियासत करते हैं। #Gorakhpur_children_deaths :(

तब आना तुम

तब आना तुम, जब हिना का रंग कई दफा चढ कर उतर जाए। जब अपने बच्चे की खातिर अबला वात्सल्य प्रेम में बिखर जाए तब आना तुम, जब मेरे जुनून जर्जर हो जाए और मेरे पास बहुत कुछ हो, दिखलाने को, बतलाने को, समझाने को, तब आना तुम जब हमारे बीच की खामोशी को इक उम्र हो जाए, और ये सफेद इश्क़ भी अपने इम्तिहान से शर्मसार हो जाए। तब आना तुम। जब आना तुम, आकर लिपट जाना जैसे चंद लम्हे पहले ही मिले हो। हवा के रूख की परवाह किए बिना सांसों को छू लेना और इस शाश्वत प्रेम को दिवा की रोशनी में दर्ज करा देना।                       ~ shivam shahi

तुम थी!

जब तक रोशनी थी, तुम थी आज चाँद जो नहीं, तो तुम भी नहीं। अब पायल का कोई शोर नहीं मन-मस्तिष्क मे कोई जोर नहीं मैं भी आहत, तुम भी घायल मन के द्वंद्व, ना है मन के कायल तुम बिन शहर सूना तो है, पर किरणों खातिर इक कोना तो है। तुम हमसे रूठे, हमसे रूठे माँ-पापा, सारा द्वंद्व इक झुनझुना तो है। सुरमयी आँखें, सुंदर गेसूए, सुरीली हंसी; इस जहां में दर्द के साधन और भी हैं। तुम्हारा था, तुमसा था, तुम्हीं मे था ; नम मन से पता चला, सितारे और भी हैं।                         - shivam shahi

तुम राष्ट्र के पांडव हो !

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तुम औरो की भांति चुन सकते थे श्वेत तुमने चुना रक्त रंजीत पताका! तुम्हरे पास भी होठ थे चुम सकते थे कोमल अधरों को रगड़ लिए होठ तुमने गाँव की माटी में सुलगती अंगीठी पर जब घूरा फड़फड़ाती मछली की आँखों को भांग हुआ तप  ब्रह्मा का जब चूमा तुमने श्रम बिन्दुओ को हलचल हुई छीर  सागर में काटा जो तुमने भुजंग को मचल उठा शिव का आसन कांपी  धरती, कांपा  भारत  जल जब लाल पताका चरम पर तुम्ही जप, तुम्ही अन्ना  तुम्हारा भगत, तुम्हारा गांधी  ये राष्ट्र का गौरव है की तुम राष्ट्र के पांडव हो !

रूलाती है, सताती हैं - शिवम् शाही

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रूलाती है सताती हैं और फिर याद आती है। तुने जो छोड़ा है आँखों में होठों की कहानियाँ, जो हाथों की लकीरों में है तेरी निशानियाँ, तुम्हारी जुल्फों की खुशबू, कानों की बालियाँ, अधखुली आखों की वो बेपरवाह मदहोशीयाँ, वो उंगलियों का लिपटना रास्तों को पीछे छोड़ना, बेझिझक हया से तुम्हारी कुछ बातों को बोलना, तुम्हारी कमर पर मेरी पाक उंगलियों का थिरकना, वो खुली जुल्फें, खिची अधरों से मेरी तरफ आना, वो अनकही बातों का तेरा समझना, मुझे समझाना, याद आती है सताती हैं, और फिर बहुत रूलाती हैं।                                               - शिवम् शाही