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रात सावन भी आये

 रात सावन भी आये,  बदरा भी बरसे भींगे ना मन, ना ही अलक  सुरमई आँखों की रह गई कसक  अंधी अंधेरी आहटों से बूंदें भी रोई  बूंदें जमीं पर गिरते, लगी खिलन े  जैसे झुक कर चूमा हो  तेरे कानों को तेरे  अधरों को, हाथों को, गालों को  फिर सरकती हुई बूंदें लगी तैरने  जैसे चंचल हुआ नीर,  मादकता के गलियारों मे फिर स्थिर हुई बूंदें मन-कलश मे । -शिवम् शाही Date: 26 June 2015

एक पत्र जिंदगी के नाम ...!!

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सुनो जिंदगी , इस बार जरा तुम सज संवर कर आओ, अखाड़े में।  वो जो ट्रांसपेरेंट चाक़ू है ना तुम्हारे पास, जो गले में घुसेड़ती हो, ज़रूर लेकर आना और वो सारे हथियार लाना जो भी तुम्हारे पसंदीदा है। मैं निहत्था आऊंगा और तुम्हारा गला घोंट दूंगा , तुम्हारी आँखों में देखकर। चाहे तुम मेरे चेहरे पर मुक्का मारो या उस पैनी ट्रांसपेरेंट चाकू को मेरे बगल में घुसेड़ दो। एक बात और, अगर तुम अपनी छिछोरी चाल से बच भी गयी तो कसम से बता रहे है, वही गिराकर, तुम्हारी छाती फाड़कर अपने हाथों से तुम्हारे कलेजे के चीथड़े कर देंगे।  इस बार तुम्हारे हरेक पैंतरे और अंदाज बेमानी होंगे क्योंकि तुम्हारे जुल्म का घड़ा फूटने वाला है और अब मेरी बारी है तुम्हे मुक्ति देने की।  कसम से तुम एक बार आ जाओ या दिख जाओ कही, वही अपने ललाट को तुम्हारे खून से नहीं रंगा तो मेरा नाम भी मौत नहीं। आओ जिंदगी तुम्हे आलिंगन करने के लिए मचल रहे हैं।  तुम्हारा होने वला  मृत्यु   

Gorakhpur_children_deaths :(

लोग कहते ये सियासत का मुद्दा नहीं हम कहते, कैसे नही.. वो कल इस्तिफ़ा मांगेंगे चलो हम आज ही मुकर जाते हैं वो संवेदना की बात करेंगे चलो हम 'वन्दे-मातरम' तैयार रखते हैं छोटा सा 'आतंकी हमला' ही तो था, केवल त्रिसठ नयी सांसे ही तो थी चलो 'नैतिक-पतन' कर नेता बनते हैं, चलो हम सियासत करते हैं। #Gorakhpur_children_deaths :(

तुम थी!

जब तक रोशनी थी, तुम थी आज चाँद जो नहीं, तो तुम भी नहीं। अब पायल का कोई शोर नहीं मन-मस्तिष्क मे कोई जोर नहीं मैं भी आहत, तुम भी घायल मन के द्वंद्व, ना है मन के कायल तुम बिन शहर सूना तो है, पर किरणों खातिर इक कोना तो है। तुम हमसे रूठे, हमसे रूठे माँ-पापा, सारा द्वंद्व इक झुनझुना तो है। सुरमयी आँखें, सुंदर गेसूए, सुरीली हंसी; इस जहां में दर्द के साधन और भी हैं। तुम्हारा था, तुमसा था, तुम्हीं मे था ; नम मन से पता चला, सितारे और भी हैं।                         - shivam shahi
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ab toh ye raste hi sachhe dost lagte hai mujhe... aur ye street lights se mujhe prerna milti hai aage badhne ki...:) अब हालात पहले जैसे नहीं कि अपने जीवन के हर खाली कोने को तुम्हारी मौजूदगी से भरना चाहता हूँ। अब शाम को पार्क जाते समय earphone तो लगता हुँ, परंतु उसमें गाने सुनता हुँ। अब फोन में balance भी रहता है, पर रात को पढ़ने के बाद छत पर जाकर किसी से बात करने की हूक नहीं उठती। तुम्हारे ना होने से अकेला सा महसूस तो जरूर होता है, पर अब दोस्तों और फैज़, मजाज़, साहिर को ज्यादा समय दे पाता हूं। तुम्हारे ना होने से मेरी जिंदगी का अस्तित्व तो समाप्त नहीं हुआ, जैसा मैं पहले कहता था; परंतु हा, अब तुम्हारे बारे में दोस्तों से बात करने में घबराता हु, तुम्हारी तस्वीर देखने से घबराता हुँ, कि कहीं जिंदगी जीने का हौसला ना काफूऱ हो जाए। तुम्हारी यादों को भुलाने के बजाए जेहऩ के इक कोने में रखकर मंजिल की तरफ अग्रसर हुँ । 

रूलाती है, सताती हैं - शिवम् शाही

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रूलाती है सताती हैं और फिर याद आती है। तुने जो छोड़ा है आँखों में होठों की कहानियाँ, जो हाथों की लकीरों में है तेरी निशानियाँ, तुम्हारी जुल्फों की खुशबू, कानों की बालियाँ, अधखुली आखों की वो बेपरवाह मदहोशीयाँ, वो उंगलियों का लिपटना रास्तों को पीछे छोड़ना, बेझिझक हया से तुम्हारी कुछ बातों को बोलना, तुम्हारी कमर पर मेरी पाक उंगलियों का थिरकना, वो खुली जुल्फें, खिची अधरों से मेरी तरफ आना, वो अनकही बातों का तेरा समझना, मुझे समझाना, याद आती है सताती हैं, और फिर बहुत रूलाती हैं।                                               - शिवम् शाही