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शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

ज़िन्दगी अगर ज़िन्दगी के तमाम रंग ग़ज़ल में देखने हों तो राजेश रेड्डी को पढ़ना एक अनिवार्य शर्त है। One of the famous creations done by one & only Rajesh Reddy! शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं आपके रस्ते हैं आसाँ आपकी मंजिल क़रीब ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें - राजेश रेड्डी

आज के दौर में चंद लोग ही बचे है जिन्होंने ज़मीर की चिड़िया को लालच की गुलेल से बचा के रखा है। अपनी लाचारी और बेबसी को भी ग़ज़ल बनाने के फ़न का नाम है राजेश रेड्डी। Another amazing poem written by Rajesh Reddy! आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें मुझको ये वहम नहीं है कि खु़दा है मुझमें मेरे चहरे पे मुसलसल हैं निगाहें उसकी जाने किस शख़्स को वो ढूँढ रहा है मुझमें हँसना चाहूँ भी तो हँसने नहीं देता मुझको ऐसा लगता है कोई मुझसे ख़फ़ा है मुझमें मैं समुन्दर हूँ उदासी का अकेलेपन का ग़म का इक दरिया अभी आके मिला है मुझमें इक ज़माना था कई ख्वाबों से आबाद था मैं अब तो ले दे के बस इक दश्त बचा है मुझमें किसको इल्ज़ाम दूँ मैं किसको ख़तावार कहूँ मेरी बरबादी का बाइस तो छुपा है मुझमें! - राजेश रेड्डी

यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है - राजेश रेड्डी

This poem is written by Rajesh Reddy and it is dedicated to the irony of life! यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम-सा बच्चा बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है न बस में ज़िन्दगी इसके न क़ाबू मौत पर इसका मगर इन्सान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है अज़ब ये ज़िन्दगी की क़ैद है, दुनिया का हर इन्सां रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है! - राजेश रेड्डी