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यहाँ भी हैं , वहा भी हैं ...

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ये जो तुम्हारा जहां है यहाँ भी हैं वहा भी हैं तुम्हारा रूप, रंग, रस, रास ; यहाँ भी हैं वहा भी हैं तुम्हारे अधरों के तट से बहता मध वो गर्दन के तराश से आंकता कोहिनूर सौंदर्य का ये सरोवर जो है वहाँ उसकी भीनी खुशबू यहाँ भी हैं वहा भी हैं परंतु , आज जो हम मग़रूर है, तो तुम  भी चूर हो याद तुम्हें भी आ रही लकीरे मेरी भी बदल रहीं जो आस यहाँ है, पायल के वेग की अधरों की अस्थिरता, यहां-वहाँ भी हैं अब ना तुम यहाँ हो, ना वहाँ हों बस वही सफ़ेद इश्क़ यहाँ भी हैं वहा भी हैं  ... 

होना या ना होना

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Add caption ये सुगंध, जो तुम्हारे होने से है इसी होने से है  विरह की चीत्कार  तुम्हारे अधरों की नमी से  पुनर्जीवित होते भावनाओ के अवशेष  विखरते लफ्ज़  और संकलित होते होठों  का  संगम, है विहंगम दृश्य  अधरों का ये साधारण स्पर्श  विसर्जन है एकाकीपन का ... 

तब आना तुम

तब आना तुम, जब हिना का रंग कई दफा चढ कर उतर जाए। जब अपने बच्चे की खातिर अबला वात्सल्य प्रेम में बिखर जाए तब आना तुम, जब मेरे जुनून जर्जर हो जाए और मेरे पास बहुत कुछ हो, दिखलाने को, बतलाने को, समझाने को, तब आना तुम जब हमारे बीच की खामोशी को इक उम्र हो जाए, और ये सफेद इश्क़ भी अपने इम्तिहान से शर्मसार हो जाए। तब आना तुम। जब आना तुम, आकर लिपट जाना जैसे चंद लम्हे पहले ही मिले हो। हवा के रूख की परवाह किए बिना सांसों को छू लेना और इस शाश्वत प्रेम को दिवा की रोशनी में दर्ज करा देना।                       ~ shivam shahi

तुम थी!

जब तक रोशनी थी, तुम थी आज चाँद जो नहीं, तो तुम भी नहीं। अब पायल का कोई शोर नहीं मन-मस्तिष्क मे कोई जोर नहीं मैं भी आहत, तुम भी घायल मन के द्वंद्व, ना है मन के कायल तुम बिन शहर सूना तो है, पर किरणों खातिर इक कोना तो है। तुम हमसे रूठे, हमसे रूठे माँ-पापा, सारा द्वंद्व इक झुनझुना तो है। सुरमयी आँखें, सुंदर गेसूए, सुरीली हंसी; इस जहां में दर्द के साधन और भी हैं। तुम्हारा था, तुमसा था, तुम्हीं मे था ; नम मन से पता चला, सितारे और भी हैं।                         - shivam shahi

रूलाती है, सताती हैं - शिवम् शाही

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रूलाती है सताती हैं और फिर याद आती है। तुने जो छोड़ा है आँखों में होठों की कहानियाँ, जो हाथों की लकीरों में है तेरी निशानियाँ, तुम्हारी जुल्फों की खुशबू, कानों की बालियाँ, अधखुली आखों की वो बेपरवाह मदहोशीयाँ, वो उंगलियों का लिपटना रास्तों को पीछे छोड़ना, बेझिझक हया से तुम्हारी कुछ बातों को बोलना, तुम्हारी कमर पर मेरी पाक उंगलियों का थिरकना, वो खुली जुल्फें, खिची अधरों से मेरी तरफ आना, वो अनकही बातों का तेरा समझना, मुझे समझाना, याद आती है सताती हैं, और फिर बहुत रूलाती हैं।                                               - शिवम् शाही