तुम थी!

जब तक रोशनी थी, तुम थी
आज चाँद जो नहीं, तो तुम भी नहीं।
अब पायल का कोई शोर नहीं
मन-मस्तिष्क मे कोई जोर नहीं
मैं भी आहत, तुम भी घायल
मन के द्वंद्व, ना है मन के कायल
तुम बिन शहर सूना तो है, पर
किरणों खातिर इक कोना तो है।
तुम हमसे रूठे, हमसे रूठे माँ-पापा,
सारा द्वंद्व इक झुनझुना तो है।
सुरमयी आँखें, सुंदर गेसूए, सुरीली हंसी;
इस जहां में दर्द के साधन और भी हैं।
तुम्हारा था, तुमसा था, तुम्हीं मे था ;
नम मन से पता चला, सितारे और भी हैं।
                        - shivam shahi

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