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शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

ज़िन्दगी अगर ज़िन्दगी के तमाम रंग ग़ज़ल में देखने हों तो राजेश रेड्डी को पढ़ना एक अनिवार्य शर्त है। One of the famous creations done by one & only Rajesh Reddy! शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं आपके रस्ते हैं आसाँ आपकी मंजिल क़रीब ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

होना या ना होना

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Add caption ये सुगंध, जो तुम्हारे होने से है इसी होने से है  विरह की चीत्कार  तुम्हारे अधरों की नमी से  पुनर्जीवित होते भावनाओ के अवशेष  विखरते लफ्ज़  और संकलित होते होठों  का  संगम, है विहंगम दृश्य  अधरों का ये साधारण स्पर्श  विसर्जन है एकाकीपन का ... 

Gorakhpur_children_deaths :(

लोग कहते ये सियासत का मुद्दा नहीं हम कहते, कैसे नही.. वो कल इस्तिफ़ा मांगेंगे चलो हम आज ही मुकर जाते हैं वो संवेदना की बात करेंगे चलो हम 'वन्दे-मातरम' तैयार रखते हैं छोटा सा 'आतंकी हमला' ही तो था, केवल त्रिसठ नयी सांसे ही तो थी चलो 'नैतिक-पतन' कर नेता बनते हैं, चलो हम सियासत करते हैं। #Gorakhpur_children_deaths :(