यहाँ भी हैं , वहा भी हैं ...

ये जो तुम्हारा जहां है
यहाँ भी हैं
वहा भी हैं
तुम्हारा रूप, रंग, रस, रास ;
यहाँ भी हैं
वहा भी हैं
तुम्हारे अधरों के तट से बहता मध
वो गर्दन के तराश से आंकता कोहिनूर
सौंदर्य का ये सरोवर जो है वहाँ
उसकी भीनी खुशबू
यहाँ भी हैं
वहा भी हैं
परंतु , आज जो हम मग़रूर है,
तो तुम  भी चूर हो
याद तुम्हें भी आ रही
लकीरे मेरी भी बदल रहीं
जो आस यहाँ है, पायल के वेग की
अधरों की अस्थिरता, यहां-वहाँ भी हैं
अब ना तुम यहाँ हो, ना वहाँ हों
बस वही सफ़ेद इश्क़
यहाँ भी हैं
वहा भी हैं  ... 

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