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यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है - राजेश रेड्डी

This poem is written by Rajesh Reddy and it is dedicated to the irony of life! यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम-सा बच्चा बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है न बस में ज़िन्दगी इसके न क़ाबू मौत पर इसका मगर इन्सान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है अज़ब ये ज़िन्दगी की क़ैद है, दुनिया का हर इन्सां रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है! - राजेश रेड्डी

यहाँ भी हैं , वहा भी हैं ...

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ये जो तुम्हारा जहां है यहाँ भी हैं वहा भी हैं तुम्हारा रूप, रंग, रस, रास ; यहाँ भी हैं वहा भी हैं तुम्हारे अधरों के तट से बहता मध वो गर्दन के तराश से आंकता कोहिनूर सौंदर्य का ये सरोवर जो है वहाँ उसकी भीनी खुशबू यहाँ भी हैं वहा भी हैं परंतु , आज जो हम मग़रूर है, तो तुम  भी चूर हो याद तुम्हें भी आ रही लकीरे मेरी भी बदल रहीं जो आस यहाँ है, पायल के वेग की अधरों की अस्थिरता, यहां-वहाँ भी हैं अब ना तुम यहाँ हो, ना वहाँ हों बस वही सफ़ेद इश्क़ यहाँ भी हैं वहा भी हैं  ... 

एक पत्र जिंदगी के नाम ...!!

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सुनो जिंदगी , इस बार जरा तुम सज संवर कर आओ, अखाड़े में।  वो जो ट्रांसपेरेंट चाक़ू है ना तुम्हारे पास, जो गले में घुसेड़ती हो, ज़रूर लेकर आना और वो सारे हथियार लाना जो भी तुम्हारे पसंदीदा है। मैं निहत्था आऊंगा और तुम्हारा गला घोंट दूंगा , तुम्हारी आँखों में देखकर। चाहे तुम मेरे चेहरे पर मुक्का मारो या उस पैनी ट्रांसपेरेंट चाकू को मेरे बगल में घुसेड़ दो। एक बात और, अगर तुम अपनी छिछोरी चाल से बच भी गयी तो कसम से बता रहे है, वही गिराकर, तुम्हारी छाती फाड़कर अपने हाथों से तुम्हारे कलेजे के चीथड़े कर देंगे।  इस बार तुम्हारे हरेक पैंतरे और अंदाज बेमानी होंगे क्योंकि तुम्हारे जुल्म का घड़ा फूटने वाला है और अब मेरी बारी है तुम्हे मुक्ति देने की।  कसम से तुम एक बार आ जाओ या दिख जाओ कही, वही अपने ललाट को तुम्हारे खून से नहीं रंगा तो मेरा नाम भी मौत नहीं। आओ जिंदगी तुम्हे आलिंगन करने के लिए मचल रहे हैं।  तुम्हारा होने वला  मृत्यु   

होना या ना होना

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Add caption ये सुगंध, जो तुम्हारे होने से है इसी होने से है  विरह की चीत्कार  तुम्हारे अधरों की नमी से  पुनर्जीवित होते भावनाओ के अवशेष  विखरते लफ्ज़  और संकलित होते होठों  का  संगम, है विहंगम दृश्य  अधरों का ये साधारण स्पर्श  विसर्जन है एकाकीपन का ... 

Gorakhpur_children_deaths :(

लोग कहते ये सियासत का मुद्दा नहीं हम कहते, कैसे नही.. वो कल इस्तिफ़ा मांगेंगे चलो हम आज ही मुकर जाते हैं वो संवेदना की बात करेंगे चलो हम 'वन्दे-मातरम' तैयार रखते हैं छोटा सा 'आतंकी हमला' ही तो था, केवल त्रिसठ नयी सांसे ही तो थी चलो 'नैतिक-पतन' कर नेता बनते हैं, चलो हम सियासत करते हैं। #Gorakhpur_children_deaths :(

तब आना तुम

तब आना तुम, जब हिना का रंग कई दफा चढ कर उतर जाए। जब अपने बच्चे की खातिर अबला वात्सल्य प्रेम में बिखर जाए तब आना तुम, जब मेरे जुनून जर्जर हो जाए और मेरे पास बहुत कुछ हो, दिखलाने को, बतलाने को, समझाने को, तब आना तुम जब हमारे बीच की खामोशी को इक उम्र हो जाए, और ये सफेद इश्क़ भी अपने इम्तिहान से शर्मसार हो जाए। तब आना तुम। जब आना तुम, आकर लिपट जाना जैसे चंद लम्हे पहले ही मिले हो। हवा के रूख की परवाह किए बिना सांसों को छू लेना और इस शाश्वत प्रेम को दिवा की रोशनी में दर्ज करा देना।                       ~ shivam shahi

तुम थी!

जब तक रोशनी थी, तुम थी आज चाँद जो नहीं, तो तुम भी नहीं। अब पायल का कोई शोर नहीं मन-मस्तिष्क मे कोई जोर नहीं मैं भी आहत, तुम भी घायल मन के द्वंद्व, ना है मन के कायल तुम बिन शहर सूना तो है, पर किरणों खातिर इक कोना तो है। तुम हमसे रूठे, हमसे रूठे माँ-पापा, सारा द्वंद्व इक झुनझुना तो है। सुरमयी आँखें, सुंदर गेसूए, सुरीली हंसी; इस जहां में दर्द के साधन और भी हैं। तुम्हारा था, तुमसा था, तुम्हीं मे था ; नम मन से पता चला, सितारे और भी हैं।                         - shivam shahi