आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें - राजेश रेड्डी

आज के दौर में चंद लोग ही बचे है जिन्होंने ज़मीर की चिड़िया को लालच की गुलेल से बचा के रखा है। अपनी लाचारी और बेबसी को भी ग़ज़ल बनाने के फ़न का नाम है राजेश रेड्डी।


Another amazing poem written by Rajesh Reddy!


आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें
मुझको ये वहम नहीं है कि खु़दा है मुझमें

मेरे चहरे पे मुसलसल हैं निगाहें उसकी
जाने किस शख़्स को वो ढूँढ रहा है मुझमें

हँसना चाहूँ भी तो हँसने नहीं देता मुझको
ऐसा लगता है कोई मुझसे ख़फ़ा है मुझमें

मैं समुन्दर हूँ उदासी का अकेलेपन का
ग़म का इक दरिया अभी आके मिला है मुझमें

इक ज़माना था कई ख्वाबों से आबाद था मैं
अब तो ले दे के बस इक दश्त बचा है मुझमें

किसको इल्ज़ाम दूँ मैं किसको ख़तावार कहूँ
मेरी बरबादी का बाइस तो छुपा है मुझमें!



- राजेश रेड्डी

Comments

Popular posts from this blog

तुम राष्ट्र के पांडव हो !

My best three poems written by Nawaj Deobandi

तब आना तुम