Dedicating this poem to all workers, maids who help us in living our day to day life. they makes our life smooth and some times some 'quityaas' harass/torture them or use them for their own profit!
हम कितने निर्लज है,
अपूर्ण,कठोर है,
अह स्वार्थ से ग्रसित है,
कैसे वो निवाला
जाता है पेट में,
बिना दिमाग को झकझोरे,
हम क्यू नहीं सोचते ,
उन फूटी किस्मतो के धनी,
निर्धनों के बारे में,
हम कितने निर्लज है।
निर्लज्जता की भी पलके झुक जाती है,
जब हम उन अक्षम-असहयो के,
पैसे पर सोते है;
जो घर-घर जाकर
जूठे बर्तन धोकर,
इकठे किये गए होते है।
हम निर्लज्जता की प्रकास्ठा पर आसीन है।
निर्लज्जता खुश है।
एवं वे,
बेबस,बेचारे,बेघर,बेसहारे बेसुध है।
हम क्यू नहीं सोचते हम कितने निर्लज है?
- shivam shahi
हम कितने निर्लज है,
अपूर्ण,कठोर है,
अह स्वार्थ से ग्रसित है,
कैसे वो निवाला
जाता है पेट में,
बिना दिमाग को झकझोरे,
हम क्यू नहीं सोचते ,
उन फूटी किस्मतो के धनी,
निर्धनों के बारे में,
हम कितने निर्लज है।
निर्लज्जता की भी पलके झुक जाती है,
जब हम उन अक्षम-असहयो के,
पैसे पर सोते है;
जो घर-घर जाकर
जूठे बर्तन धोकर,
इकठे किये गए होते है।
हम निर्लज्जता की प्रकास्ठा पर आसीन है।
निर्लज्जता खुश है।
एवं वे,
बेबस,बेचारे,बेघर,बेसहारे बेसुध है।
हम क्यू नहीं सोचते हम कितने निर्लज है?
- shivam shahi
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