तुम राष्ट्र के पांडव हो !

तुम औरो की भांति चुन सकते थे श्वेत तुमने चुना रक्त रंजीत पताका! तुम्हरे पास भी होठ थे चुम सकते थे कोमल अधरों को रगड़ लिए होठ तुमने गाँव की माटी में सुलगती अंगीठी पर जब घूरा फड़फड़ाती मछली की आँखों को भांग हुआ तप ब्रह्मा का जब चूमा तुमने श्रम बिन्दुओ को हलचल हुई छीर सागर में काटा जो तुमने भुजंग को मचल उठा शिव का आसन कांपी धरती, कांपा भारत जल जब लाल पताका चरम पर तुम्ही जप, तुम्ही अन्ना तुम्हारा भगत, तुम्हारा गांधी ये राष्ट्र का गौरव है की तुम राष्ट्र के पांडव हो !