#1. मंज़िल पे न पहुंचे उसे रस्ता नहीं कहते दो-चार कदम चलने को चलना नहीं कहते एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते कम हिम्मती, ख़तरा है समंदर के सफ़र में तूफ़ान को हम, दोस्तों, ख़तरा नहीं कहते बन जाए अगर बात तो सब कहते हैं क्या क्या और बात बिगड़ जाए तो क्या क्या नहीं कहते #2. वहाँ कैसे कोई दिया जले, जहाँ दूर तक हवा न हो उन्हें हाले-दिल न सुनाइये, जिन्हें दर्दे-दिल का पता न हो हों अजब तरह की शिकायतें, हों अजब तरह की इनायतें तुझे मुझसे शिकवे हज़ार हों, मुझे तुझसे कोई गिला न हो कोई ऐसा शेर भी दे ख़ुदा, जो तेरी अता हो, तेरी अता कभी जैसा मैंने कहा न हो, कभी जैसा मैंने सुना न हो न दिये का है, न हवा का है, यहाँ जो भी कुछ है ख़ुदा का है यहाँ ऐसा कोई दिया नहीं, जो जला हो और वो बुझा न हो मैं मरीज़े-इश्क़ हूँ चारागर, तू है दर्दे-इश्क़ से बेख़बर ये तड़प ही इसका इलाज है, ये तड़प न हो तो शिफ़ा न हो #3. ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है बेटे से समझौता करना पड़ता है जब औलादें नालायक हो जाती हैं अपने ऊपर ग़ुस्सा करना पड़ता है सच्चाई को अपनाना आसान नहीं दुनिया...