Posts

Showing posts from 2021

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

ज़िन्दगी अगर ज़िन्दगी के तमाम रंग ग़ज़ल में देखने हों तो राजेश रेड्डी को पढ़ना एक अनिवार्य शर्त है। One of the famous creations done by one & only Rajesh Reddy! शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ मैं ज़िन्दगी जब मुझसे मज़बूती की रखती है उमीद फ़ैसले की उस घड़ी में क्यूँ बिखर जाता हूँ मैं आपके रस्ते हैं आसाँ आपकी मंजिल क़रीब ये डगर कुछ और ही है जिस डगर जाता हूँ मैं - राजेश रेड्डी

आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें - राजेश रेड्डी

आज के दौर में चंद लोग ही बचे है जिन्होंने ज़मीर की चिड़िया को लालच की गुलेल से बचा के रखा है। अपनी लाचारी और बेबसी को भी ग़ज़ल बनाने के फ़न का नाम है राजेश रेड्डी। Another amazing poem written by Rajesh Reddy! आग है, पानी है, मिट्टी है, हवा है मुझमें मुझको ये वहम नहीं है कि खु़दा है मुझमें मेरे चहरे पे मुसलसल हैं निगाहें उसकी जाने किस शख़्स को वो ढूँढ रहा है मुझमें हँसना चाहूँ भी तो हँसने नहीं देता मुझको ऐसा लगता है कोई मुझसे ख़फ़ा है मुझमें मैं समुन्दर हूँ उदासी का अकेलेपन का ग़म का इक दरिया अभी आके मिला है मुझमें इक ज़माना था कई ख्वाबों से आबाद था मैं अब तो ले दे के बस इक दश्त बचा है मुझमें किसको इल्ज़ाम दूँ मैं किसको ख़तावार कहूँ मेरी बरबादी का बाइस तो छुपा है मुझमें! - राजेश रेड्डी

My best three poems written by Nawaj Deobandi

#1. मंज़िल पे न पहुंचे उसे रस्ता नहीं कहते दो-चार कदम चलने को चलना नहीं कहते एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना एक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते कम हिम्मती, ख़तरा है समंदर के सफ़र में तूफ़ान को हम, दोस्तों, ख़तरा नहीं कहते बन जाए अगर बात तो सब कहते हैं क्या क्या और बात बिगड़ जाए तो क्या क्या नहीं कहते #2. वहाँ कैसे कोई दिया जले, जहाँ दूर तक हवा न हो उन्हें हाले-दिल न सुनाइये, जिन्हें दर्दे-दिल का पता न हो हों अजब तरह की शिकायतें, हों अजब तरह की इनायतें तुझे मुझसे शिकवे हज़ार हों, मुझे तुझसे कोई गिला न हो कोई ऐसा शेर भी दे ख़ुदा, जो तेरी अता हो, तेरी अता कभी जैसा मैंने कहा न हो, कभी जैसा मैंने सुना न हो न दिये का है, न हवा का है, यहाँ जो भी कुछ है ख़ुदा का है यहाँ ऐसा कोई दिया नहीं, जो जला हो और वो बुझा न हो मैं मरीज़े-इश्क़ हूँ चारागर, तू है दर्दे-इश्क़ से बेख़बर ये तड़प ही इसका इलाज है, ये तड़प न हो तो शिफ़ा न हो #3. ख़ुद को कितना छोटा करना पड़ता है बेटे से समझौता करना पड़ता है जब औलादें नालायक हो जाती हैं अपने ऊपर ग़ुस्सा करना पड़ता है सच्चाई को अपनाना आसान नहीं दुनिया...

यक़ीं तक आएगा इक दिन गुमाँ, ग़लत था मैं - अमित गोस्वामी

One of the nice poems written by Amit Goswami! यक़ीं तक आएगा इक दिन गुमाँ, ग़लत था मैंमुझे लगा था छँटेगा धुआँ, ग़लत था मैं मेरी तड़प पे भी आँखों में तेरी अश्क न थे मुझे यक़ीन हुआ तब, कि हाँ, ग़लत था मैं नज़र में अक्स तेरा, दिल में तेरा दर्द लिए मैं कब से सोच रहा हूँ, कहाँ ग़लत था मैं लगा था अश्कों से धुल जाएँगे मलाल के दाग़ मगर हैं दिल पे अभी तक निशाँ, ग़लत था मैं मेरा जुनून था क़ुर्बत के रतजगे लेकिन मेरा नसीब है तन्हाइयाँ, ग़लत था मैं - अमित गोस्वामी

वो रुलाकर हँस न पाया देर तक - नवाज़ देवबंदी

One of the poems written by famous Indian poet Nawaj Deobandi in his early life. Amazing way of expression. वो रुलाकर हँस न पाया देर तक जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक भूलना चाहा अगर उस को कभी और भी वो याद आया देर तक भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये माँ ने फिर पानी पकाया देर तक गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर धूप रहती है ना साया देर तक -नवाज़ देवबंदी

यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है - राजेश रेड्डी

This poem is written by Rajesh Reddy and it is dedicated to the irony of life! यहाँ हर शख़्स हर पल हादसा होने से डरता है खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है मेरे दिल के किसी कोने में इक मासूम-सा बच्चा बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है न बस में ज़िन्दगी इसके न क़ाबू मौत पर इसका मगर इन्सान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है अज़ब ये ज़िन्दगी की क़ैद है, दुनिया का हर इन्सां रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता है! - राजेश रेड्डी