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तब आना तुम

तब आना तुम, जब हिना का रंग कई दफा चढ कर उतर जाए। जब अपने बच्चे की खातिर अबला वात्सल्य प्रेम में बिखर जाए तब आना तुम, जब मेरे जुनून जर्जर हो जाए और मेरे पास बहुत कुछ हो, दिखलाने को, बतलाने को, समझाने को, तब आना तुम जब हमारे बीच की खामोशी को इक उम्र हो जाए, और ये सफेद इश्क़ भी अपने इम्तिहान से शर्मसार हो जाए। तब आना तुम। जब आना तुम, आकर लिपट जाना जैसे चंद लम्हे पहले ही मिले हो। हवा के रूख की परवाह किए बिना सांसों को छू लेना और इस शाश्वत प्रेम को दिवा की रोशनी में दर्ज करा देना।                       ~ shivam shahi

तुम थी!

जब तक रोशनी थी, तुम थी आज चाँद जो नहीं, तो तुम भी नहीं। अब पायल का कोई शोर नहीं मन-मस्तिष्क मे कोई जोर नहीं मैं भी आहत, तुम भी घायल मन के द्वंद्व, ना है मन के कायल तुम बिन शहर सूना तो है, पर किरणों खातिर इक कोना तो है। तुम हमसे रूठे, हमसे रूठे माँ-पापा, सारा द्वंद्व इक झुनझुना तो है। सुरमयी आँखें, सुंदर गेसूए, सुरीली हंसी; इस जहां में दर्द के साधन और भी हैं। तुम्हारा था, तुमसा था, तुम्हीं मे था ; नम मन से पता चला, सितारे और भी हैं।                         - shivam shahi
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ab toh ye raste hi sachhe dost lagte hai mujhe... aur ye street lights se mujhe prerna milti hai aage badhne ki...:) अब हालात पहले जैसे नहीं कि अपने जीवन के हर खाली कोने को तुम्हारी मौजूदगी से भरना चाहता हूँ। अब शाम को पार्क जाते समय earphone तो लगता हुँ, परंतु उसमें गाने सुनता हुँ। अब फोन में balance भी रहता है, पर रात को पढ़ने के बाद छत पर जाकर किसी से बात करने की हूक नहीं उठती। तुम्हारे ना होने से अकेला सा महसूस तो जरूर होता है, पर अब दोस्तों और फैज़, मजाज़, साहिर को ज्यादा समय दे पाता हूं। तुम्हारे ना होने से मेरी जिंदगी का अस्तित्व तो समाप्त नहीं हुआ, जैसा मैं पहले कहता था; परंतु हा, अब तुम्हारे बारे में दोस्तों से बात करने में घबराता हु, तुम्हारी तस्वीर देखने से घबराता हुँ, कि कहीं जिंदगी जीने का हौसला ना काफूऱ हो जाए। तुम्हारी यादों को भुलाने के बजाए जेहऩ के इक कोने में रखकर मंजिल की तरफ अग्रसर हुँ ।